संग्रह वृत्ति का त्याग कर , जीवन वृत्ति को अपनाएं -- परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी publicpravakta.com


संग्रह वृत्ति का त्याग कर , जीवन वृत्ति को अपनाएं -- परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी

भविष्य की चिंता छोड़ कर आज को भरपूर जियें - हम रामजी के - रामजी हमारे


अनूपपुर  :- श्रीराम सेवा समिति अनूपपुर द्वारा आयोजित श्रीराम कथा के अष्टम दिवस व्यासपीठ से कथा कहते हुए परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने सफल जीवन का अद्भुत संदेश देते हुए कहा कि संग्रह वृत्ति को त्याग कर जीवन वृत्ति को अपनाईये। यह मानुष तन बड़े भाग्य से मिला है। इसे रोने , दुखी होने, निंदा करने, संग्रह करने में व्यर्थ ना करके प्रभू शरण में आनंद का जीवन मार्ग अपनाएं 

परमपूज्य जी ने कथा को आगे बढाते हुए  कहा कि मां शबरी भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं। गुरु मतंग ने शबरी से कहा था कि भगवान तुम्हारी झोपड़ी में आएंगे। गुरु आदेश से शबरी अंबा भगवान नाम का जप करती हुई संयम पूर्वक प्रतीक्षा कर रही हैं। परमपूज्य जी ने कहा कि कल्पना जब यथार्थ स्वरुप लेती है तब क्रियाशीलता रुक जाती है। 

दर्द जब गीत में बदलता है, 

हार जब जीत मे बदलता है।

क्या कहें उस आलम को, 

जब कोई प्रीत, मीत में बदलता है।

भगवान को भूख नहीं लगती। वो केवल भक्तों के लिये लीला करते हैं। श्रीराम जी केवल लीला करते हैं।भगवान आनंद प्रदान करते हैं। आवश्यकता के अनुरुप रचना बना लेते हैं। सद् गुरुओं की रचना थी कि यदि राम पहले ही धनुष तोड़ देगें तो बाकी राजा बवाल करेंगे। इसलिए पहले सभी राजाओं को शक्ति का आंकलन करने दिया गया । यह सब प्रभू की रामलीला है। प्रभू जब जिससे जैसा चाहते हैं, तब उससे वैसा करवा लेते हैं।जीवन में सब कुछ हो लेकिन झूठ के मार्ग पर कभी ना चलें। एकबार झूठ का आश्रय लेने पर कभी भला नहीं हो सकता। सत्य का मार्ग कल्याणकारी , रसमय, शान्ति प्रदाता ,प्रगतिकारक है।

गुरु जी ने कहा कि समय बदल गया है। सोशल मीडिया पर नयी पीढी शुरु हुई है‌ । जो महा पुरुषों की निंदा करती है। इसे ज्ञान का प्रदर्शन मानते हैं । निंदा किसी की करने का हमे कोई अधिकार नहीं है। लोग पहले कुछ भी बोल लेते हैं, फिर माफी मांगते घूमते हैं।भगत का जीवन साधुमय जीवन हो। असत्य का जीवन नहीं होना चाहिए । उत्पात ,खट कर्म , उधम  का जीवन नहीं होना चाहिए ।जीव से संबंध मात्र को ही भगवान भक्ति मानते हैं । भक्त स्वयं को भक्त घोषित नहीं करता। जो भक्त है , वो है।

भगवान श्रीराम शबरी से कहते हैं कि धर्ममय प्रवृष्टि, प्रतिष्ठता , साधुता, सज्जनता, प्रचुर धन, बुद्दिमय चातुर्य, सर्व गुण सम्पन्नता हो लेकिन मेरे प्रति भक्ति ना हो तो वह मुझे प्रिय नहीं है। भगवान राम शबरी से नवधा भक्ति का मार्ग बतलाते हैं ।

प्रथम संतों की संगत, कथा प्रसंग सुनने की ललक , भगवत गुणगान, नाम जप, इंद्रिय निग्रह ,संतों का सम्मान, दृष्टि को सहज ,शुद्ध रखें। सरल निर्मल स्वभाव नवमी भक्ति है।समाज को अपनी दृष्टि से देख कर , हायपर हो कर किसी का कल्याण नहीं है। भक्तों को हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। सबसे स्नेह रखिये, सबका आदर करिये। मन को शांत रखने का अभ्यास हो। यथालाभ का अर्थ सहज भाव से प्राप्ति । ऐसा नहीं हुआ तो दुख मिलेगा। भक्तों का दुखी होना उचित नहीं है। जिनमें यह नव गुण होते हैं, वे मुझे अतिशय प्रिय हैं । उन पर मेरी सकल कृपा रहती है। 

जो भगवान के भरोसे है, निर्मल सच्ची भक्ति रखता है, पूर्ण समर्पित है। हम रामजी के - रामजी हमारे हैं । वो हमको - हम उनको प्यारे हैं। प्रभू कहते हैं कि मेरे दर्शन का फल अनुपम है। जीवात्मा भी परमात्मा है। रोना  - धोना ,दुखी होना नहीं चाहिये। आनंद में रहिये।संग्रह की वृत्ति से हटकर जीने की वृत्ति अपनाइये। पुण्य करो, सत्कर्म करो, दान करो, जप करो, तप करो और इससे अपने जीवन की सच्ची पूंजी को बढाईये। अपने हाथ को पुण्य करो, दिव्य करो, पवित्र करो। उन्होंने कहा किभूल कर भी किसी को श्राप और आशीर्वाद नहीं देना चाहिए। आशीर्वाद देने से पुण्य नष्ट होता है। श्राप देने से स्वयं का अमंगल होता है। भगवान जीव का भला उसके सत्कर्मो के अनुरुप करते हैं। आपकी श्रद्धा, सेवा ,समर्पण,शीलता स्वत: आशीर्वाद प्राप्त करवा देता है। आशीर्वाद दिया नहीं जाता, स्वयमेव मिल जाता है। कल की कथा दोपहर दो बजे से पांच बजे तक भगवान श्री राम राज्याभिषेक का महोत्सव मनाया जाएगा।

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