सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए अनूपपुर ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही माना
अनूपपुर का चर्चित डॉ मंसूरी प्रकरण का मामला
अनूपपुर :- सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया है सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई ड्यूटी नहीं करता तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं है अनूपपुर के बहुचर्चित डॉक्टर मंसूरी प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया मामला 23 साल पुराने प्रकरण में पुलिस कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अभियोजन की अनुमति नहीं होने के कारण अनूपपुर न्यायालय द्वारा दर्ज किए गए प्रकरण को खारिज कर दिया था जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डॉक्टर मंसूरी परिवार की ओर से अपील दायर की गई थी सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्य युगल पीठ के जस्टिस अभय ओक तथा जस्टिस राजेश बिंदल ने स्पेशल लीव पिटिशन स्वीकार की और कहा कि आधिकारिक कर्तव्यों का पालन स्पष्ट नहीं होने पर शासन के अभियोजन की अनुमति आवश्यक नहीं है युगल पीठ ने निचली अदालत द्वारा आरोपों को सही मानते हुए हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया अनूपपुर न्यायालय में डॉ एस,एम मंसूरी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जो जिसमें उन्होंने बताया था कि उनकी बहू की तरफ से जबलपुर महिला थाना में उनके पुत्र एवं परिवारजनों के विरुद्ध दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज कराई थी पुलिस धारा 498506 34 तथा दहेज एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया था महिला थाना में पदस्थ एएसआई सुरेखा परमार, टीआई लक्ष्मी कुशवाहा, कांस्टेबल मीणा गोसाई, उषा गुप्ता, अकील खान प्रमोद शर्मा रोहिणी प्रसाद लखन सिंह,व पूर्व बहू महजबी, उनके चार भाई, फिरोज अहमद, मोहम्मद रियाज, अब्दुल वहीद, मोहम्मद सादिक सभी 7 जुलाई 2000 की सुबह 5 बजे अनूपपुर उनके घर पर दबिश दी थी सभी ने उनके उनकी पत्नी, पुत्रों, और पुत्री के साथ बदसलूकी गाली गलौज मारपीट लूटपाट करते हुए अपराधिक कृत्य किया था उसके बाद उन्हें अनूपपुर थाना लाया गया था और वहां 30 हजार रुपएरिश्वत की मांग की थी. रिश्वत नहीं देने पर हथकड़ी लगाकर घुमाया था अपने साथ घटित घटना के विरोध में कार्रवाई हेतु अनूपपुर न्यायालय में परिवाद दायर किया था जिस पर न्यायालय ने 24 लोगों की गवाही के उपरांत 8 पुलिसकर्मियों और 5 अन्य कुल 13 लोगों के विरुद्ध धारा 147, 323, 294, 506 बी, 34 के तहत प्रकरण दर्ज करने का आदेश जारी किया था जिला न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए पुलिसकर्मियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी जबलपुर हाईकोर्ट के न्यायाधीश माननीय आर.सी. मिश्रा ने 2 मई 2010 कोयाचिका खारिज कर दी थी और इस बात की स्वतंत्रता दी थी कि याचिकाकर्ता चाहे तो निचली अदालत में उठाए गए बिंदुओं कोउठाने के लिए स्वतंत्र है. हाईकोर्ट में डॉक्टर मंसूरी की ओर से एडवोकेट अरविंद श्रीवास्तव ने पैरवी की थी,इसके बाद अनूपपुर न्यायालय ने अनावेदक पुलिसकर्मियों व अन्य लोगों के खिलाफ आरोप तय कर किए थे, जिसके बाद परिवाद की मुख्य आरोपी सुरेखा परमार एस. आई ने दूसरी बार हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी हाई कोर्ट जबलपुर ने धारा 197 के तहत शासन से अभियोजन की अनुमति नहीं होने के कारण अनूपपुर न्यायालय के आदेश को खारिज कर ने की मांग की थी जिसे स्वीकार करते हुए मुख्य आरोपी पुलिस कर्मी का नाम डिस्चार्ज कर दिया गया था, इसी बीच डॉक्टर एस. एम. मंसूरी का देहांत हो गया ।
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ डॉक्टर मंसूरी के पुत्र डॉक्टर मुस्ताक मंसूरी ने उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली में स्पेशल लीव पिटिशन दायर की सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले का अवलोकन करते पाया कि महिला थाना जबलपुर के अधिकार क्षेत्र में अनूपपुर थाना नहीं आता है इसके बावजूद भी पुलिस टीम ने सुबह 5 बजे दबिस दी थी "अधिकारिक कर्तव्य स्पष्ट नहीं होने के कारण शासन की अभियोजन की अनुमति आवश्यक नहीं है "सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए अनूपपुर न्यायालय के आदेश को सही करार दिया डा मंसूरी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट नवीन कुमार सिंह ने पैरवी की है ।