भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में शुभम बघेल खोजी पत्रकारिता अवॉर्ड से सम्मानित
गर्म सलाखों से दागने की कुप्रथा, आदिवासियों के मुद्दे व इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म पर मिला अवार्ड
शहडोल :- पत्रिका शहडोल संस्करण के संपादक व अधिमान्य पत्रकार शुभम बघेल को भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में खोजी पत्रकारिता अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उन्हे यह अवार्ड 15 अप्रेल को रवीन्द्र नाट्य गृह इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों को गर्म सलाखों से दागने की कुप्रथा, आदिवासियों के मुद्दे और इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म में बेहतर कार्यों को लेकर दिया गया है। भारतीय पत्रकारिता महोत्सव में एसपी सिंह स्मृति खोजी पत्रकारिता अवार्ड के लिए मध्यप्रदेश के 17 पत्रकारों का चयन किया गया था। इस भारतीय पत्रकारिता महोत्सव को पत्रकारिता में इंदौर को वैश्विक पहचान दिलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार स्व. राहुल बारपुते, स्व. प्रभाष जोशी, स्व. राजेन्द्र माथुर, स्व. माणिकचंद वाजपेयी, स्व. शरद जोशी, स्व. अभय छजलानी एवं स्व. वेद प्रताप वैदिक को समर्पित किया गया। महोत्सव के अवसर पर भारत में समाचार-पत्रों के 120 वर्ष के सफर को दर्शाने वाली प्रदर्शनी का आयोजन रविन्द्र नाट्य गृह में किया गया है। इसके साथी ही समसामयिक मुद्दों पर केन्द्रित देश के जाने-माने 30 कॉर्टूनिस्ट के कॉर्टून की प्रदर्शनी का आयोजन प्रीतमलाल दुआ सभागृह में किया जाएगा। आदिवासी इलाकों के बड़े मुद्दों पर शुभम बघेल इम्पैक्टफुल अभियान के लिए पहचाने जाते हैं।
दगना कुप्रथा और आदिवासियों के मुद्दों पर अभियान
आदिवासी इलाकों में बच्चों को अंधविश्वास के फेर में गर्म सलाखों से दागकर इलाज किया जाता था। इस कुप्रथा के खिलाफ लगातार पांच वर्ष से अभियान चला रहे हैं। पांच सौ गांवों का दौरा कर 2 हजार से ज्यादा बच्चों की सूची तैयार कर उच्च स्तर तक पहुंचाया था। बाद में दागना कुप्रथा के खिलाफ धारा 144 लागू की गई। गांव गांव चौपाल लगाई गई। दागने वालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले गुनिया और तांत्रिकों की बड़े स्तर पर काउंसलिंग कराई गई। दागना के खिलाफ स्पेशल टास्क फोर्स भी बनी है।
बैगाओं की जाति में गड़बड़ी, 6 हजार के रिकार्ड सुधरवाए
इसके अलावा बैगाओं के अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। शहडोल संभाग के बैगाओं के रिकार्ड में जाति गलत दर्ज कर दी गई थी। इसकी वजह से सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था। बैगाओं का मुद्दा प्रमुखता से उठाया। गांव गांव शिविर लगाए गए और 6 हजार से ज्यादा बैगाओं के रिकार्ड में सुधार किया।
आदिवासी फुटबाल खिलाडियों की बने आवाज
आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रोत्साहन के लिए भी लगातार काम कर रहे हैं। शहडोल के आदिवासी गांव विचारपुर में राष्ट्रीय व राज्य स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी थे। ये मजदूरी करने के लिए मजबूर थे। कोई फावड़ा चलाता था तो कोई दुकानोंं में मजदूरी करता था। आदिवासी बच्चों के मुद्दों को उठाया। जिसके बाद फुटबॉल अभियान में लगातार इम्पैक्ट हो रहे हैं। अब तक संभाग की सभी पंचायतों में 1 हजार से ज्यादा फुटबॉल क्लब बन चुके हैं। यहां राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं हुई हैं। विचारपुर के आदिवासी युवा खिलाडिय़ों को उद्योगों में नौकरी मिली है। मैदान का नामकरण करने के साथ खेल एवं युवा कल्याण विभाग को हैंडओवर किया है। यहां फुटबॉल अकादमी बनाने के लिए दिल्ली से टीम आई थी और सर्वे किया था। अब ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन यहां कोच तैयार कर रहा है।