धर्म परिवर्तन करने वाले हो आरक्षण के दायरे से बाहर,जनजातीय समाज ने भरी हुंकार , सड़क से संसद तक लड़ाई की तैयारी publicpravakta.com



धर्म परिवर्तन करने वाले हो आरक्षण के दायरे से बाहर


 धर्मान्तरित होने पर अजा के आरक्षण दायरे से करो बाहर


जनजातीय समाज ने भरी हुंकार -- सड़क से संसद तक लड़ाई की तैयारी


27 मई को जिला मुख्यालय में अजजा वर्ग का विशाल धरना, प्रदर्शन


अनूपपुर  :- अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों में इस बात को लेकर भारी नाराजगी है कि धर्मान्तरण करने वाले लोग तेजी से जनजातीय प्रथाओं और परंपराओं से मुंह मोड़ रहे हैं। धर्मान्तरित होकर मुसलमान और ईसाई बनने के बावजूद ऐसे लोग धडल्ले से आरक्षण की पूरी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं।  इसका बड़ा नुकसान जनजातीय समाज के वास्तविक जरुरतमन्दों को उठाना पड़ रहा है। इसके चलते जनजातीय समुदाय में ऐसे धर्मान्तरित लोगों के विरुद्ध व्यापक नाराजगी है। नाराज जनजातीय समाज ऐसे धर्मान्तरित लोगों को आरक्षण की सूची से बाहर करने की मांग को लेकर आगामी 27 मई को अनूपपुर जिला मुख्यालय में विशाल धरना , प्रदर्शन करने जा रहा है। जिसमें जिले भर के जनजातीय समुदायों के लोगों के बड़ी संख्या में एकत्रित होने की संभावना है। 

     मंगलवार की प्रात: अनूपपुर में जनजाति सुरक्षा मंच के पदाधिकारियो ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए उपरोक्त विषय पर ध्यानाकर्षण किया। मंच के संयोजक नरेन्द्र मरावी, जिला संयोजक सुदामा सिंह सिंग्राम, सह संयोजक रामदास पुरी, अमोल सिंह के साथ समाज के अन्य लोग पत्रकार वार्ता में शामिल हुए। पत्रकारों को संबोधित करते हुए श्री मरावी ने कहा कि अनुच्छेद 342 में संशोधन की मांग को लेकर 27 मई को जनजातीय समाज द्वारा जिला मुख्यालय में विशाल धरना प्रदर्शन किया जाएगा। एससी की तरह धर्मान्तरित होने पर एसटी को भी आरक्षण के दायरे से बाहर करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि इस मांग को लेकर सड़क से लेकर संसद तक आन्दोलन किया जाएगा।जनजातीय सुरक्षा मंच ने चिंता जाहिर की कि 80 % नौकरी धर्मान्तरित लोगों को जा रही है।शिक्षा ,नौकरियों में लाभ भी ऐसे ही लोग लाभ ले रहे हैं। उन्होने कहा कि पेसा एक्ट की 5 अ मे दर्ज है। असम हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन है कि धर्मान्तरण किये लोगों को आरक्षण का लाभ ना दें ।

कार्यक्रम के संयोजक नरेन्द्र मरावी ने बतलाया कि 27 मई को पुराना जनपद कार्यालय इंदिरा चौक , उकृष्ट विद्यालय के पास जिले भर से आए हजारों जनजातीय बन्धुओं का एकत्रीकरण दोपहर 12 बजे से होगा । यहाँ भोजन उपरान्त नगर के मुख्य मार्गों ,वार्डों से होकर आन्दोलनकारियों की रैली निकलेगी जो वापस इसी स्थल पर आम सभा में परिवर्तित हो जाएगी।  धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि  भगवान बिरसा मुंडा स्व कार्तिक उरांव 2 अ कंडिका 2 में निहित है कि कोई भी व्यक्ति जिसने जनजाति , आदि मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हो , वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जायेगा ।  संयुक्त संसदीय समिति 10 जुलाई 1967 की सिफारिश अनुसूचित जनजाति होने का अर्थ देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिये संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था। संविधान की मंशा के अनुरूप भारत के वन क्षेत्र में प्राचीनकाल से निवास कर रहे अनुसूचित जनजाति समुदाय का अर्थ है 1. भौगोलिक दूरी 2. विशिष्ट संस्कृति , बोली भाषा 3. परम्परा एवं रूढ़िगत न्याय व्यवस्था 4. सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन 5. संकोची स्वभाव । अतः इन जनजातियों को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखकर उनके लिये न्याय और विकास को सुनिश्चित करने के लिये आरक्षण एवं अन्य विशेष प्रावधान किये गए । जैसे जनजाति उपयोजना हेतु वित्तीय प्रावधान , कस्टमरी लॉज , वन अधिकार एवं अन्य प्रावधान शामिल हैं । इन प्रावधानों पर विशेष निगरानी हेतु राष्ट्रपति तथा राज्यपाल को विशेष अधिकार भी दिये गए । चूँकि जनजातियों को ये सुविधाएँ एवं अधिकार अपनी संस्कृति , आस्था , परम्परा की सुरक्षा करते हुए विकास करने हेतु सशक्त बनाने के लिये दिये गए थे । लेकिन इन सुविधाओं का लाभ उन जनजातियों के स्थान पर वे लोग उठा रहे हैं , जो अपनी जाति छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं । दुर्भाग्य की बात है कि , कुछ धर्मान्तरित लोग जो अपनी संस्कृति , आस्था , परम्परा को त्याग कर ईसाई या मुसलमान हो गए हैं , इन सुविधाओं का 80 प्रतिशत लाभ मूल जनजाति समदाय से छीन रहे हैं । इससे वास्तविक जरुरत मन्द लोगों के अधिकार का हनन हो रहा है।

मंच के जिला संयोजक सुदामा सिंह सिंग्राम ने बतलाया कि इससे पूर्व 14 राज्यों के राज्यपालों को इस मांग से अवगत कराते हुए ज्ञापन सौंपे गए । साथ ही मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , अरुणाचलप्रदेश , उत्तरप्रदेश , गुजरात , झारखण्ड , आसाम के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर उनका समर्थन मांगा गया । भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय केरल से सम्बंधित एक वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्म बदलने के बाद कोई व्यक्ति उस जनजाति का सदस्य रहा या नही यह इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसा व्यक्ति धर्मांतरण के बाद भी क्या सामाजिक रूप से अयोग्य - कमजोर है और क्या वह अब भी अपनी पुरानी जाति के रीति - रिवाज और परम्पराओं का पालन कर रहा है ? ( केरल बनाम चन्द्रमोहन एआईआर 2004 सर्वोच्च न्यायालय 1672 ) जनजाति समाज में सभी रीति - रिवाज , सामाजिक व्यवस्था एवं पारंपरिक उत्सव आदि हमारे आराध्य देवी - देवता तथा देव स्थान के प्रति आस्था एवं विश्वास पर आधारित होते हैं । धर्मान्तरित होते समय व्यक्ति को अपने देवी - देवताओं और प्रकृति पूजा का त्याग करना जरूरी होता है ( बाईबल मे ईसाई होने की अनिवार्य शर्त ) । तो फिर क्या वह अपनी - अपनी धर्म संस्कृति का पालन एवं रक्षण कर सकते हैं ? हम सब जानते हैं कि जहाँ तक " सामाजिक रूप से अयोग्य कमजोर " होने का धर्मान्तरित व्यक्ति धर्म न बदलने वालों से तो अच्छी स्थिति में हो ही जाता है । प्रश्न हैं तो यह व्यावहारिक रूप से असंभव बात है कि हरेक मामले में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाए कि अमुक - अमुक धर्मान्तरित व्यक्ति इसका पालन नहीं कर रहा,  अतः उसे जनजाति से बाहर घोषित किया जाए । इसके लिये यह आवश्यक है कि एक स्पष्ट कानून बनाते हुए धर्मान्तरित होते ही उसे अनुसूचित जनजाति से बाहर कर आरक्षण की सारी सुविधाओं से वंचित किया जाए । ईसाई को प्रधान बनने पर लगाई रोक आदिवासी से ईसाई बनने के बाद परम्परागत रूप से गाँव के मुखिया के चुनाव में भाग लेने पर रोक लगाने के मेघालय के एक शासकीय आदेश को गोवाहाटी उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कर न्यायोचित एवं वैध ठहराया कि ऐसे मुखिया को परम्परा के अनुसार गाँव के धार्मिक अनुष्ठान एवं प्रशासनिक दोनों कार्य एक साथ करने पड़ते हैं और एक धर्मांतरित ईसाई ऐसा नहीं कर सकता है । ऐसा धर्मांतरित ईसाई आदिवासी अब देश में कहीं भी गाँव का मुखिया नहीं बन सकता । ऐसे लोग अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक दोनों को देय सुविधाओं के लाभ उठा रहे हैं जो अनुचित , अनैतिक एवं संविधान की मूल भावना के विपरीत हैं । ( ऐवान लांकेई रिम्बाई बनाम जयंतिया हिल्स डिस्ट्रिक्ट कॉउंसिल एवं अन्य 2006 , 3 स्केल ) - उपरोक्त निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने हमारी मांग का समर्थन किया है और जनजातिय हितों की रक्षा की है ।

श्री मरावी ने इससे पूर्व पत्रकारों से कहा कि जनजाति सुरक्षा मंच का मत है कि भारत की जनजातियों को उनका हक मिलना चाहिये । इसके लिये कुछ प्रमुख बिंदू आपके ध्यानार्थ प्रस्तुत हैं ----

 राजनैतिक दल अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीट पर धर्मान्तरित व्यक्ति को टिकट नहीं दें । ऐसे लोग जो समाज के लिये कुछ करना चाहते है वे जनजातीय वर्ग के साथ हो रहे इस अन्याय की लड़ाई में हमारे साथ खड़े हों और ग्राम पंचायत से लेकर सामाजिक पदों पर बैठे धर्मान्तरित व्यक्तियों को बेनकाब करें । 

जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित सरकारी नौकरियों को हथियाने वाले ऐसे गलत एवं षड्यंत्रकारी धर्मान्तरित व्यक्तियों के खिलाफ न्यायालयीन कार्यवाही हेतु आगे आएँ ।

 केन्द्र एवं राज्य सरकारों में ऊँचे पदों पर बैठे अफसरों से भी यह अपेक्षा है कि वे समाज के अंतिम छोर पर खड़े इस जनजातीय समुदाय की आवाज बनें और धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने से खुद को रोकें । मीडिया के बढ़ते प्रभाव से हर कोई वाकिफ है इसलिए इस मुद्दे को जन अवाज बनाने के लिये मीडिया का सहयोग भी अपेक्षित है । हम आशा करते हैं कि भारत का प्रिंट , इलेक्ट्रॉनिक एवं वेब मीडिया धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुचित लाभ देने की इस लड़ाई में हमारे साथ पूरा सहयोग करेगा । 

भारत के प्रत्येक संसद सदस्य एवं विधानसभा सदस्य से अपेक्षा की जाति है कि वे जनजातियों को उनका वाजिब हक दिलाने में अपनी ओर से व्यक्तिगत रूचि लेकर पहल करें और धर्मान्तरित व्यक्तियों को बेनकाब करें । 

फर्जी जाति प्रमाण - पत्र प्राप्त कर अनुसूचित जनजाति बने व्यक्तियों को पहचान कर अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाया जाए । 

अगर जनजातीय धर्म , संस्कृति , सभ्यता और मान्यता को जीवित रखना है तो उनके स्वधर्म को जीवित रखना होगा । सरकारी नौकरियाँ पहले से ही कम है , यदि समय रहते धर्मान्तरित और फर्जी लोगों को पदच्युत नही किया गया तो जनजाति समूदाय को नौकरियों का अवसर कभी नहीं मिल पाएगा । इसलिये हमें जनजाति वर्ग के हित में इस लड़ाई में संयुक्त रूप से साथ आना होगा । जनजातीय मंच के इस जनजागरण अभियान को लेकर व्यापक तैयारियाँ की गयी हैं। 27 मई को इस विशाल प्रदर्शन में जनजातीय समाज के प्रत्येक वर्ग के नेताओं के शामिल होने की संभावना है।

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