दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रुप समाहित -- स्वामी ईश्वरानंद जी महाराज
नर्मदा तट पर बीजापुरी में संतों , नर्मदा परिक्रमा वासियों का समागम
अनूपपुर :- हमारे सनातन धर्म में भगवान दत्तात्रेय जयंती या दत्तात्रेय पूर्णिमा का अत्यंत महत्व है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाया जाता है। दत्तात्रेय का अद्भुत स्वरूप है। उनके तीन सिर और छ: हाथ हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश का अंश होने के साथ - साथ ईश्वर और गुरु दोनों रुप विद्यमान हैं। शनिवार , 18 दिसम्बर को जिले के पुष्पराजगढ अन्तर्गत नर्मदा तट पर स्थित बीजापुरी में श्री श्री 1008 श्री परमपूज्य श्री ईश्वरानंद उत्तम स्वामी जी महाराज माता नर्मदा परिक्रमा के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं को दत्तात्रेय जी की महिमा बतलाते हुए उपरोक्त विचार व्यक्त किये।*
श्री राम बाबा जी, विश्वजीत जी, तपन भौमिक, हुकुम जी, नरेन्द्र सिंह चौहान , रामलाल रौतेल, सुदामा सिंह,ब्रजेश गौतम, नरेन्द्र मरावी, मनोज द्विवेदी, श्रीमती इंद्राणी सिंह,नवल नायक, उमेश पाठक, प्रवीण सिंह के साथ हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए महाराज जी ने कहा कि दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों सत्व, रजस और तमस एवं उनके हाथ यम, नियम, साम,दम, दया का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके २४ गुरु हुए हैं इसलिए इन्हे श्री गुरुदेवदत्त कहा जाता है। दत्तात्रेय सिद्धों के परमाचार्य हैं।
*त्वदीय पाद पकंजम नमामि देवी नर्मदे* माँ नर्मदा के परमभक्त सलकनपुर मैय्या की पहाड़ीयों और घने जंगलों के बीच साधना करने वाले महामंडलेश्वर 10008 श्री ईश्वरानन्द जी महाराज ( पू . उत्तम स्वामी जी ) ने परिक्रमा के सही अर्थ को साकार रूप देने एवं नर्मदा परिक्रम के संकल्प व संस्कार को जन सामान्य के बीच सार्थक करने की दृष्टि से अपने भक्तों के साथ 14 नवम्बर 2022 से परिक्रम प्रारम्भ किया है ।स्वामी जी के जीवन परिचय बावत पूछने पर भक्त मंडल के लोग कहते हैं कि स्वामी जी के जीवन पर कुछ लिखना या बताना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा है । संत तो केवल संत होते है । उनका परिचय मात्र " संत " ही है । महामंडलेश्वर 1008 पू . संत श्री ईश्वरानन्द जी ( पू . उत्तम स्वामी जी ) का जन्म 1974 की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मध्यरात्रि 12 बजे लोहगांव जिला अमरावती में हुआ । आप जन्म से ही धार्मिक प्रवर्ति के रहे । स्वामी जी की प्राथमिक शिक्षा - दीक्षा गांव के ही विद्यालय में हुई । स्वामी जी कि माता ने उनको उच्च शिक्षा के लिये महाराष्ट्र की पावन धरती पंडरपुर भेजा । पंडरपुर में स्वामी जी गायन , वादन एवं संगीत में पारगंत हुए । वहां उन्होंने सम्पूर्ण गीता को कंठस्थ किया । स्वामी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । तबला वादन में स्वामी जी को राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ । स्वामी जी ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में संन्यास गृहण कर धार्मिक शिक्षा ली एवं स्वामी जी के गुरु जी का शरीर छुटने के बाद स्वामी जी के हृदय में भारी वैराग्य उत्पन्न हुआ और पंडरपुर छोड़कर निकल गये । स्वामी जी के माता पिता व रिश्तेदार सभी ने बहुत ढुंढने का प्रयास किया , किन्तु ईश्वर को स्वामी जी से कुछ और कार्य करवाना था । स्वामी जी पंडरपुर से निकलकर देश की पवित्र नदी के नर्मदा के तट नर्मदापुरम् पहुँचे । तत्पश्चात सलकनपुर स्थित विन्ध्याचल पर्वत के उपर चार साल तक दिगम्बर अवस्था में ध्यानस्थ हुए । इसके पश्चात स्वामी जी मात्र दो वस्त्र धारण कर पहाड़ी से नीचे उतरे । स्वामी जी ने " नर सेवा ही नारायण सेवा " के भाव को लेकर शोसित - पीड़ित हिन्दू समाज के लिये कार्य करना प्रारम्भ किया । स्वामी जी का प्रथम आश्रम बांसवाड़ा में बना । इस क्षेत्र में वनवासिवयों के लिये विद्यालय और अनेक प्रकल्प चलाये । स्वामीजी एक महान ज्योतिषी होने के साथ - साथ जन सेवा हेतु समर्पित है । स्वामीजी का ख्याती धीरे धीरे बढ़ती गई और स्वामी जी सर्वव्यापी सर्व स्पर्शी होने लगे । स्वामी जी ने भागवत कथाओं के माध्यम से म . प्र . , राजस्थान , महाराष्ट्र , गुजरात एवं अन्य अनेक प्रांतों में ख्याती प्राप्त की । स्वामी जी का 10 मार्च 2021 को माँ कनकेश्वरी देवी की उपस्थिती में वैरागी अखाड़ों के महामंडलेश्वर एवं अध्यक्ष द्वारा महामण्डलेश्वर के रूप में महाभिषेक किया गया । तब से महर्षि उत्तम स्वामी जी का अखाड़ा परिषद् के द्वारा महामंडलेश्वर ईश्वरानन्द जी के रूप में नामकरण हुआ । स्वामी जी के देश में चार आश्रम बांसवाड़ा , मंदसौर , हरिद्वार एवं सलकनपुर में है । स्वामी जी शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी संस्थाओं के माध्यम से सेवा प्रदान कर रहें है । देश भर में स्वामी जी से दीक्षित 5 लाख से अधिक गुरूभक्त है जो स्वामी जी के आदर्शों का पालन करते हुए किसी ना किसी सेवा कार्य में संलग्न है । हम सब सौभाग्यशाली है कि स्वामी जी सृजन से विसर्जन तक एवं मध्यप्रदेश की जीवन रेखा माँ नर्मदा की परिक्रमा में आपके बीच उपस्थित हैं। स्वामी जी की नर्मदा परिक्रमा में उनके साथ सैकड़ों श्रद्धालुगण भजन कीर्तन करते हुए भक्ति भाव के साथ परिक्रमा कर रहे हैं।