रहस्यमयी और अलौकिक है अनूपपुर का बाबा मढी पाण्डव कालीन अवशेष
कलेक्ट्रेट से महज दो किमी दूर ....बन सकता है पर्यटन स्थल
( मनोज कुमार द्विवेदी -- अनूपपुर ,मप्र)
अनूपपुर :- जिला मुख्यालय में कलेक्ट्रेट परिसर से बमुश्किल दो किमी उत्तर - पश्चिम में सोन नद और चंदास नदी के संगम पर स्थित बाबा मढी अत्यंत पवित्र, रहस्यमयी ,अलौकिक स्थल है। कलेक्टर बंगले के पीछे स्थित होने के बावजूद यह शहर के लोगों से आज भी अछूता है। कुछ गिने - चुने लोग और करहीबाह, परसवार, बरबसपुर, सीतापुर जैसे लगे गांव के लोग यहाँ नवरात्रि , मकर संक्रांति जैसे पर्व पर दर्शन और पूजा करने पहुंचते हैं । लेकिन जिला मुख्यालय और जिले की बड़ी आबादी को इस स्थल की सिद्धता होने के बावजूद जानकारी तक नहीं है। इसका बड़ा कारण यहाँ तक पहुंच मार्ग का ना होना है।*
👉 सोन - चंदास संगम पर स्थित बाबा मढी तक पहुँच मार्ग नहीं है। जिला मुख्यालय स्थित कलेक्ट्रेट के सामने से पगडंडी मार्ग से चंदास को पार करके या मानपुर स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय के बगल से सोन नद को पार करके यहाँ श्रद्धालुगण आते हैं। बीआरसी भवन के बगल से होकर एक मार्ग करहीबाह ( परसवार) होकर है। लेकिन यहाँ तक पहुंचने के लिये लगभग दो किमी पैदल चलना होगा। बरसात के मौसम में यहाँ पैदल पहुंचना भी अत्यंत कठिन होता है।
👉 बाबामढी में हजारों वर्ष पुराने मन्दिर के अवशेष आज भी उपलब्ध हैं। अधिकांश प्रतिमाएं, मन्दिर के अवशेष खंडित हैं तथा हजारों वर्षों से बिना देखभाल , ऐसे ही बिखरे हुए हैं। यद्यपि स्थानीय लोगों ने इसे सहेजने का प्रयास करते हुए , ग्रामीण परिवेश में प्रचलित देव स्थान का स्वरुप देने की कोशिश की है। नक्काशीदार पत्थरों पर चूना, डिस्टेंपर पोत देने से मूल स्वरुप थोड़ा बदला हुआ सा है। यहाँ पहुँचने पर इस स्थल कॊ नजदीक से देख कर इसके आयु काल का आंकलन नहीं किया जा सकता । लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार इसका संबध पाण्डवों से रहा है। यहाँ बरगद,पीपल, नीम , पलाश, आम सहित बहुत से विशालकाय वृक्षों , झाड़ियों, लताओं का समूह प्राकृतिक सुन्दरता को निखारता दिखता है। सोन - चंदास में पानी का बहाव हमेशा बना रहने से यह स्थल अत्यंत रमणीक दिखता है।
👉 वर्षों पहले गोरखपुर से शतायु पार एक सिद्ध संत अनूपपुर जिले में पाण्डव कालीन अवशेष की तलाश करते हुए आए थे। तब यहाँ पदस्थ एक अधिकारी के निवास पर रहते हुए संत ने उन्हे इस स्थल की खोज करने को कहा। जिले भर में दो हफ्ते भटकने के बाद जब अधिकारी इस स्थान को खोजने में सफल नहीं रहे तब वे संत स्वत: सोन तट के किनारे से पैदल होकर यहाँ पहुंच गये। उन्होंने इस स्थल के द्वापर युगीन होने की जानकारी दी। कहा जाता है कि सामतपुर में बने तालाब और शिव - मारुति मन्दिर की भी इससे संबद्धता है। इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग को करना चाहिए ।
👉 वर्तमान में इस स्थान पर प्राचीन धरोहरों के साथ एडवोकेट ब्रजेन्द्र पंत द्वारा बनवाया गया माता कालिका का मन्दिर है। जहां नवरात्रि में जवारा बोने, अखंड ज्योति जलाने के साथ नियमित भक्त मंडली द्वारा भजन, कीर्तन और समय समय पर भंडारे का आयोजन होता है। एक शिव प्रतिमा, बजरंगबली एवं दुर्गा जी की प्रतिमा भी यहाँ है। कहा जाता है कि यहाँ बहुत पुराने अलग - अलग प्रजातियों के सांप आज भी हैं।
👉 जिला प्रशासन से इस सिद्ध, प्राचीन स्थल की नैसर्गिकता, सुन्दरता को बचाए रख कर चंदास नदी में एक छोटा स्टाप डैम + रफ्टा बना कर , कच्चा मुरुम निर्मित पहुंच मार्ग विकसित करने तथा पुरातत्व विभाग से इसे संरक्षित करने की मांग स्थानीय लोगों ने की है।